
स्वार्थ सिद्धि को धर्म के प्याले मे परोस कर समाज को पंगु तो हजारों सालों से किया जा रहा है पर परंपरा की चादर पहना कर मौका पे चौका मरने कि कला दिवाली में पूरे निखार पर रहती है। जनाब, जब हम चांद तो क्या वहॉं पानी तक खोज लायें है तो बाजार की चाल को भी समझे, विञापन के जरिये फैलाये जा रहे दिमागी भ्रम को तोडे, आज के दौर की जरूरत है। पूजा -पाठ से क्या आज तक किसी की गरिबी हटी है ....? हजारों वर्षों तक पुश्त दर पुश्त पूजा अर्चना करने वालों को तो गरिब होने की सवाल ही पैदा नहीं होना चाहिए था ?
दरसल व्यापारी और पंडितो ने दिवाली में समाज को लूटने का ऑफिशियली कॉपी राईट ले रखा है जिसका रेव्नयू कलेक्शन में आज भी जबर्दस्त हैं साल दर साल वृद्धि के साथ। दिपावली में लक्ष्मी अगर किसी के पास आती है तो इन्ही के पास, बनिये का तो धनतेरस के नाम से लोगों को लूटना जग जाहीर है। "टीवी ले जाईये आसान किशतों (उधार) पर" जैसे सलोगन के साथ जबकि धनतेरस या दिवाली के आस पास के दिनों में उधार को वर्जित माना गया है पर हम नियम भूलाकर बाजार और लुभावने विञयापन में आ जाते हैं, सही भी है लक्ष्मीजी का वाहन उल्लू ही तो है और त्यौहारों के नाम पे इनकी मंशा यही बनाने की होती आपकी जेब में ज्यादा से ज्यादा जेब में छेद करके। पर हमको-आपको बाजार कि इस मानसिकता से मुक्ति पानी होगी।
बोनस के पैसे कि दारु उडा के
नकली मिठाई का ढेरा लगा के
सोचना है क्या , जो होना है वो होगा
चल पडे है बनिये पंडित , जेबो में सेंध लगाने
जाने क्या होगा उमा रे जाने क्या होगा रमा रे
नकली मिठाई का ढेरा लगा के
सोचना है क्या , जो होना है वो होगा
चल पडे है बनिये पंडित , जेबो में सेंध लगाने
जाने क्या होगा उमा रे जाने क्या होगा रमा रे
प्रसिद्ध निवेशक वारेन बफेट के मुताबिक बचाया पैसा ही कमाया पैसा है और धन की बरबादी को रोकना अतिआवश्यक हैं, अब मर्जी है आपकी, कि आप किसी और कि ATM मशीन बनना चाहते या खुद का बैंक । पूजा पाठ ,फिजूलखर्जी या जुये से लक्ष्मी खुश नहीं होती है, लक्ष्मी तो ञानी गजपती के पास रहती है मतलब धन सोच समझ कर दिमाग लगाकर ही प्राप्त होता है।
शक्ति शुक्ला
वित्तिय सलाहकार
वित्तिय सलाहकार
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