Aug 6, 2024

पैसा भी कैसे बन जाये कमाउ पूत

भारत युवाओं का देश, जहां की 65 फीसदी आबादी 35 साल के नीचे की है। इस युवा देश की नई पीढी खुली और तेजी से बढती अर्थव्यवस्था के साथ जवान हुई है। इसी माहौल में पला-बढ़ा हमारा नया निवेशक भी देश की अर्थव्यवस्था में भागीदारी करता है। पर ज्यादातर कामयाब नहीं हो पाता। कारण वित्तीय जानकारी या साक्षरता का अभाव। सब कुछ बदल चुका है या बदलाव पर है। सोच से लेकर दिनचर्या, नियामक से लेकर नियम, निवेश से लेकर उसके तरीके तक। लेकिन जो नहीं बदला वो है निवेश को लेकर हमारी सोच, जिसका कारण है वित्तीय जानकारी या साक्षरता का अभाव और तिरस्कार दोनों। वैसे आज संचार के हर माध्यम से जानकारी बढाने की दिशा में काफी प्रयास हो रहे हैं। पर अफसोस! अधिकतर कैप्सूल कोर्स हैं, जिनके लिए फंडामेटल जरूरी हैं। आप बिजनेसमैन बनना चाहते हो या डॉक्टर, सीए, आईएएस या कुछ भी। मूल जानकारियां जरूरी है। प्रोफेशन में सेट हो जाने के बाद भी जानकारी से लबरेज रहना होता है। लेकिन कितना भी अनुभवी पायलट हो, पहले ट्रेनिंग फिर ट्रैफिक कंट्रोलर की जरूरत से इनकार नहीं कर सकता है। अच्छा बताइये। सोने के अभी के दाम क्या कभी घटेंगे? 

पेट्रोल के भाव या लोन ब्याज दर कभी कम होगी? जनाब! जब इन सभी बाजार संचालित उत्पादों का दाम कम नहीं होगा तो उद्गम स्थली, यानी बाजार क्यों कर धोखा दे जाता है। कभी सोचा कि शेयर बाजार में आप मात क्यों खा जाते हैं? साइकिल चलाना आपको आता नहीं है, आप सीखते है। 1+1=2 होता है, आपने सीखा है आप जानते नहीं थे। पैसा कमाना आपने सीखा है या आप जानते थे? याद कीजिये। दरअसल ये सब जिसमें आज आप पारंगत है, उसे आपने शुरुआत मे मार्गदर्शक के सहारे से सीखा, जाना या किया था। उच्च शिक्षा प्राप्त अभिभावक भी बच्चों को पढाते हैं स्कूल/गुरू की छत्र-छाया में।

इसी तरह स्वतंत्र वित्तीय सलाहकार भी निवेश में मार्गदर्शक होते हैं, जो एक निश्चित फीस पर आपके लिए काम करते हैं। ध्यान दें यहां बात स्वतंत्र वित्तीय सलाहकार की हो रही है, न कि कमीशन एजेंटो की। और, लाख टके की बात। जनाब! ये है कि हम इंसान तीन चीजें पैदा करते है – औलाद, अनाज और पैसा। पहले दो, औलाद और अनाज को तो अपना मानते हैं। किसान सेहतमंद फसल के लिए कितना खटता है। बोरिंग लगाओ, कुआं खोदो, खाद डालो। अरे बेटा, तबीयत खराब हो गई, चलो डॉक्टर पास। सही तालीम पाकर बच्चा आपका नाम रौशन करे, इसके लिए अच्छे स्कूल से लेकर ट्यूशन, इंस्टीटूशन्स की गूगली सर्च मारते हैं। पर वहीं जब बात पैसे की आती है तो सौतेला व्यवहार – गया! जाने दो। कभी पुचकार कर हाल जानते तो जवाब आता – ये स्कूल अच्छा नहीं है। और तो और कभी पूछिए – कितने दिन के लिए पैसा लगाना है तो आम जवाब 6 महीने-साल भर। मेरे सरकार! जवाब दीजिए। नहीं तो सोचिएगा जरूर कि जब आपका दो साल का बच्चा आपको चाय बनाकर नहीं पिला सकता तो अपने नवजात फंड/स्टॉक से ऐसी नाजायज मांग क्यों?

दूसरे, एफडी या डाक बचत को 5 साल, फिर शेयर या म्यूचुअल फंड के साथ इतनी नाइंसाफी, क्यों? तीसरे, जब आपको खुद 40-50 हजार की सैलरी पाने में 25 से 35 साल लग गए तो क्या थोडा-सा वक्‍त आपका ये ’बच्चा’ भी लेगा कि नही? तो पहले पढाई (संचय) कराए कि पैसा सीए बने न कि मजदूर, जहां दिहाड़ी एक दिन, फांके चार रोज होते हैं। क्या आप जानते हैं, कि पिछले 25 सालों में शेयर बाजार 100 गुना बढ़ा है, जबकि फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) में सिर्फ 6 से 10 गुना वृद्धि हुई है। क्या आप जानते कि 30 साल के व्यक्ति का 20 लाख का बीमा महज सालाना के 4-6 हजार में हो जाता, जबकि यूलिप में 1,33,333 (SAMF 15) रुपए में होता है। एक हजार की मासिक सिप जो 2 मार्च 2000 से 2 फरवरी 2005 तक चली, उसमे कुल जमा 60 हजार पर रिटर्न आता 259% यानी 2,15,256 रुपए। लेकिन एक कुशल सलाहकार ने मॉनिटरिंग करते हुए बाजार के हर डिस्काउंट सीजन (जिसे लोग डाउन मार्केट बोलते है) पर पांच हजार के गुणकों में 3 बार यानि 15 हजार रुपए का अतिरिक्त निवेश कराके रिटर्न को 343% यानि 2,80,817 रुपए का लाभ दिलाया, जो 25% के विशेष निवेश पर 84% अतिरिक्त है। इसे कहते वित्तीय प्रबंधन जिसका मूल उद्देश्य कम से कम निवेश कराके अधिकतम रिटर्न की प्राप्ति है।

 यहां डिस्काउंट सीजन की पहचान की गई, जिसे उस समय निवेशक से बेहतर उसका सलाहकार जानता था। और, संगत का असर का रंग ये रहा कि वो निवेशक आज स्टॉक मार्केट विशेषज्ञ है, उसी सलाहकार के साथ! वित्तीय सलाहकार शेयर से लेकर म्यूचुअल फंड, सरकारी-प्राइवेट फिक्स्ड डिपॉजिट से लेकर डाक-बचत स्कीम की जानकारी रखते है, जिसे आपका रिस्क प्रोफाइल जानने के बाद प्रस्तावित और व्यवस्थित करते हैं। प्रस्ताव के बाद वित्तीय सलाहकार और उसकी टीम मार्केट मॉनटरिंग करती है। यहीं एक ध्यान देने वाली बात जो स्वतंत्र वित्तीय सलाहकार की विश्वसनीयता, भरोसे, क्षमता और सेवान्मुखता – इन सबकी शुरुआत में ही एक साथ परख कराती है, वह यह कि वित्तीय सलाहकार आपको प्रस्तावित स्कीम, फंड या स्टॉक को कहीं से भी लेने की स्वतंत्रता देता है कि नहीं।

   सबसे जरूरी है कि अपनी आंखें और दिमाग खुला रखकर किसी वित्तीय सलाहकार को नियुक्त करें। थोड़ा कष्ट उठाने से आपको ही बेहतर चुनाव करने में काफी मदद मिल सकती है। अगर पैसा सुरक्षित हाथों में फलता-फूलता है तो आपको ही फायदा होगा। साथ ही वित्तीय सलाहकार के रूप में ही आपको एक दीर्घकालिक भरोसेमंद आर्थिक संबंधी भी मिल सकता है। 

तो, सौतेला व्यवहार न करते हुए सही स्कूल (सलाहकार) में भर्ती कराएं और यकीन मानिए कि आपका ये पैसा भी एक दिन आपका कमाऊ पूत बनकर आपके लिए पैसा लाएगा जैसे कि आप हर महीने सैलरी लाते हैं। है अपना काम तो समझाना, ए दिल रिश्ते तोड़ के जोड़। जुदाई की घडियां लाखों-करोडों, मिलन के लम्हे दो या तीन

 टीम फंड गुरु,

खुद की लुगाई से दूरी कैसी?

तुम समझो ना समझो पर हम तो कह के रहेंगे,
की अपना बना लो हम तुम्हारे ही रहेंगे
अजी इश्क कर लो छुट जाएगी जवानी
तब बुढ़ापे में क्या ब्याह करेंगे?

रत्ती भर भर भी समझो लोगे ना तो लाइफ कसम से बन जानी है अब भी समय है. ये जो शेयर मार्केट है ना! रहस्य का पिटारा नहीं है सिंपल बजिनेस गणित है 

हम इस विधा को सहज बोलचाल भाषा में प्रस्तुत कर हम हिन्दी भाषियो को हमारी जड़ से जोड़ने का भागीरथी प्रयास किया है.

बात यू है की ज्यादा इतिहास, ग्रंथों आदि को साक्ष्य नहीं बल्कि मौजूदा ग्लोबल शेयर मार्केट के इतिहास पर नजर डालो तो इस जटिल वित्तीय दुनिया, जिसमें व्यस्त स्टॉक बाजार और जटिल व्यापार तंत्र शामिल हैं, की एक दिलचस्प इतिहास है जो सदियों पहले से चला आ रहा है।

विश्व प्रथम स्टॉक एक्सचेंज कौन?
इस वित्तीय विकास के केंद्र में प्रथम मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज, एम्स्टर्डम स्टॉक एक्सचेंज है। 1602 में स्थापित, इस ऐतिहासिक संस्था ने आधुनिक स्टॉक बाजारों के लिए रास्ता बनाया, जिसने हमारे निवेश, व्यापार और वित्तीय दुनिया को समझने के तरीकों को आकार दिया। एम्स्टर्डम स्टॉक एक्सचेंज की नींव डच स्वर्ण युग के दौरान रखी गई थी, जब डच गणराज्य एक प्रमुख व्यापारिक शक्ति के रूप में फल-फूल रहा था। इस उत्साही माहौल में, डच ईस्ट इंडिया कंपनी, जिसे वीओसी के नाम से भी जाना जाता है, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में एक प्रमुख शक्ति के रूप में उभरी।

रापचिक बवाल काट डाला डच ईस्ट इंडिया कंपनी ने डच स्वर्ण युग के दौरान, जब डच गणराज्य व्यापार में धूम मचा रहा था, एम्स्टर्डम स्टॉक एक्सचेंज की शुरुआत हुई। इस जोशीले दौर में, डच ईस्ट इंडिया कंपनी, जिसे वीओसी के नाम से भी जाना जाता था, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में एक बड़ी ताकत बन गई। अपने बड़े-बड़े व्यापारिक कामों के लिए पैसे जुटाने के लिए, वीओसी ने एक नई तरकीब निकाली - शेयर बेचने की।

किया यूँ की लोगों को समझाया की, अगर तुमने 1000 रुपये लगाकर 10% हिस्सा खरीदा, तो जब कंपनी जब मुनाफा कमाएगी, तुम्हें भी 10% मिलेगा। अगर कंपनी बढ़ती है तो उसकी भी कीमत बढ़ती है, तुम चाहो तो तब अपने 1000 रूपए को 3000 रुपये की बढ़त पर देख सकते हो और या अपना हिस्सा बेचकर मुनाफा कमा सकते हो। हम तो विदेश से समान ला रहे जिसे अछे मुनाफ़े मे बेच ही रहे है तुम हिस्सेदार बनकर अपना पैसा बढ़ा सकते हो और हम अपना बजिनेस.

शेयर मार्केट में भी यही होता है, जहाँ कंपनियाँ अपने व्यापार में पैसे लगाने के लिए लोगों को शेयर बेचती हैं। तो 1602 में, कंपनी ने आम जनता को अपने लाभदायक व्यापार में निवेश करने का मौका दिया, जिससे लोग कंपनी में हिस्सेदारी खरीद और बेच सकते थे। ये पारंपरिक तरीके से अलग था और इससे निवेशक भी मुनाफा कमा सकते थे।

इस सब का इंडिया से कनेक्शन ?
अरे कंपनी डील तो इंडिया से ही करती थी और आईडिया यहां के राजा और महाजनो या सेठों के सम्बन्ध को जानकर आया. डच ईस्ट इंडिया कंपनी (वीओसी) ने भारत में मसालों के व्यापार में बड़ी भूमिका निभाई। इससे कंपनी को फायदा हुआ और एम्स्टर्डम स्टॉक एक्सचेंज का भी विकास हुआ। वीओसी ने जनता को शेयर जारी किए, जिनमें भारतीय निवेशकों ने भी हिस्सा लिया। मसालों के व्यापार के अच्छे मौके और कंपनी का दबदबा देखकर भारतीय निवेशक भी शेयर खरीदने लगे और एम्स्टर्डम स्टॉक एक्सचेंज पर व्यापार करने लगे।

तो पहली कंपनी जिसने पब्लिक को शेयर बेचे?
डच ईस्ट इंडिया कंपनी थी। 1602 में, इस कंपनी ने पहली बार लोगों को अपने व्यापार के शेयर बेचने शुरू किए। यही वो समय था जब शेयर बाजार की शुरुआत हुई!

 इस प्रकार, भारत के लिए स्टॉक एक्सचेंज केवल एक आधुनिक अवधारणा नहीं है, बल्कि इसकी जड़ें एक पुरानी और समृद्ध व्यापारिक परंपरा में गहराई से जुड़ी हुई हैं, वहीं अर्थ काम भारत के इस अग्रणी वित्तीय ज्ञान और निवेश को सहज भाषा में पेश करने वाले पोर्टल के रूप में हैं।

  टीम फंड गुरु

Feb 8, 2011

इस गिरावट का आओ मिलकर करें स्वागत


जब भी शेयर बाजार गिरा, लघ्घीमार बडे ताव में आ जाते हैं। हर खबर ऐसे तोडते-मरोडते हैं जैसे खत्म हुआ टूथ-पेस्ट ट्यूब ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि हम इस दृष्टिकोण को मान लेते है जबकि इनके हर बयान बाद में एक मजाक की तरह ही साबित होते हैं, ये जान लें। दरसल शेयर बाजार बढी भीड कि हर उमस को इस तरह का वेन्टलेशन देता है, जो सामान्य और जरूरी हैं। जाने कब हम इस सच्चाई में खुद को कब ढालेंगें?
कृषि उत्पादन बढ़ने से उत्साहित सरकार ने आज अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 8.6% वृद्धि आंकी है। जो पिछले साल देश की 8% से 0.06% बेहतर है, जिसमें कृषि क्षेत्र कि वृद्धि 5.4 % रहने की संभावना है, जबकि पिछले साल यह मात्र 0.4% थी। निर्माण गतिविधि के लिये 8% वृद्धि की संभावना है जो पिछले साल 7% थी। वहीं आउटसोर्सिंग में हमारा दबदबा बरकार है जिससे सेवा क्षेत्र में 11% बढत कि संभावना  है जो 9.7% थी पिछले साल। वहीं देसी-विदेशी संस्थाओं कि तरफ से खरिददारी बढ रही है। क्या कहें उनको जो चंद रोज के ईजप्ट संघर्ष से एनालिस्टओं कि फर्टलाइज़र सेक्टर कि गिरने कि बात को सच्च मान बैढ रहे हैं, पर ये भोंपू तब बज रहा है जब सरकार इस सेक्टर को नियंत्रण मुक्त करने पर विचार कर रही है।

मांग बढने से सफेद सोने ’कपास’ भी बढत पर हैं और 21 फरवरी से शुरू हो रहे बजट सत्र में सुधारों कि धार देखने को मिल सकती है, जिसमें व्यक्तिगत आयकर छूट सीमा को 1. 60 लाख रुपए से बढ़ाकर 3 लाख रुपये किया जाना शामिल है। उधर कुल 91,240 करोड के तो सरकारी FPO है, जिसमें NTPC और SAIL दोनो ही जल्द आने वाले हैं, जिसके लिये तैयारीयां शुरू हो चुकी हैं।
अरे गोली मारे लघ्घीमारों को, किसी भी गिरावट को ’आपदा है आपदा’ का मंत्र दोहराने लगते हैं। याद है वो 2008 की जबरदस्त गिरावट जिसे वित्तीय दुनिया के अंत की तरह देखा जा रहा था वो बेहद कम अवधि के दौरान ही चोखे रिटर्न के रूप में समाप्त हुई थी. निवेशकों को याद रखना चाहिए कि स्टॉक की कीमतें, ये गिरावट वास्तव में अच्छी खबर है। आओ अस्थिरता का स्वागत करें, शेयरों में या इक्विटी फंड में सिप के माध्यम से निवेश करके।
टीम फंड गुरू,
टीम 72 द फ़ंड हाउस के साथ

Nov 27, 2010

अमा यार सुधर भी जाओ

बाजार तो लंबे वक्‍त से सरविसिंग चाह ही रहा था, बस 2जी स्पेक्ट्रम , कॉमन वेल्थ गेम्स, कोरिया , आयरलैंड संकट और अभी का लेटेस्ट LIC हाउसिंग का किस्सा, इन सारी न्यूजों ने बस  मौका दे दिया। ये करेक्शनस हि बाजार को सही स्तर पर पहुंचा्ते है साथ हि सस्ते में खरीददारी का सुंदर अवसर।

अभी जब मैंने बाजार कि इस गिरावट के मुत्‍तालिक लोगो कि नब्ज टटोली तो, पुन: वही मानसिकता दिखी, पेट्रोल का रेट जिस रात से बढने होते है, उसी की शाम को लंबी लाइन में घंटों इंतजार करके सस्ता पेट्रोल तो लेते हो पर यहॉ, बिदक जाते हो, जबकि बाजार वो भी है बाजार ये भी है। आज का भारत  हमारे बगैर भी विकास  कर सकता है, पर हमारा विकास इसकी रफ्तार से कदम ताल मिलाये बिना नही हो सकता है। तो आज ही आगे बढो नही तो  "अभी बहुत कुछ सामने आनेवाला है"  सोचा करो शांत रहो और जब सस्ता माल खत्म होकर बाजार सुधर जाये, तब तो ठंढे हो हि जाओगे क्योंकि तब तक शेयर महंगे हो चुके होते हैं। इसलिए ये फैसला आप पर ही रहा कि कब खरीदना है।

 और जो आगे बढना चाहते है, पर जानकारी नही की कैसे और कौन से शेयर ले, तो इस गुत्थी को अगले सोमवार से हम अपने सहयोगी 72 THE FUND HOUSE कि टीम के सहयोग से एक नये कालम से सुलझायेंगे जो आपको योजना और यकीन के साथ खरिदना सिखायेगा।

उतार-चढ़ाव बाजार के स्वभाव का हिस्सा है। और जिन्दा चीजों में ही हलचल होती है।

Nov 26, 2010

बीत चुके घटनाक्रम के धरातल पर, आज कि तैयारी करना। दर्जी को पुरानी नाप देकर आज के कपडे सिलवाने जैसा है।

Nov 7, 2010


जिन मामूली से मामूली चीजो की बढती कीमतो को मंहगाई कहा जा रहा हैं, वो 5-5 हजार के जूते खरिदने के कारण आया समाजवाद है। बडा असंतुलित लगता था 30 हजार का मोबाईल रखने वाला 20 रु० कि दाल खाते हुये, अब शान से 80 रु० कि दाल खरिदिये!!